Thursday, July 9, 2015

बेटियां ........संसोधित.... रचना माँ मुझे भी प्यार दो... <<<><><><><><><> माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो...! मैं अजन्मीं....कोख तेरी....है...मेरा संसार माँ..! आवरण तन आपका..तेरा.रक्त ही आहार माँ..! हूँ भले मैं..सृष्ठि प्रभु की..पर तेरा अधिकार हूँ..! मैं सृजन हूँ..आपका...माँ..आपका संसार हूँ...! हे जननि जन कर मुझे तुम,इक नया संसार दो | माँ..मुझे भी प्यार दो..! माँ मुझे भी प्यार दो...! त्याग तेरा..तन में मेरे..अब..धड़कने भी लगा है | संस्कारों..की सुरभि से..मन महकने भी लगा है | आपके..बलिदान को माँ..चिंतनों में..भर पढूंगी | आपके सम्मान हित माँ..सच कहूँ युग से लड़ूंगी | जग के..झूंठे दंभ में आ..माँ..न मुझको मार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...!. माँ मुझे भी प्यार दो ...! माँ तेरी जननी ने भी तो..एक दिन..तुमको जना था | तब सृजन के रीति पथ पर पितु तुम्हारा वर बना था | फिर..युगल स्पंदनों से..सृजन की..परणीति महकी | माँ ..तुम्हें भी ..माँ बनाने ...कोख में ..तेरे मैं चहकी | इस सृजन के..रीतिपथ का..बस मुझे अधिकार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो ...! क्या रहोगी खुश..सृजन..अपना स्वयं ही हार कर | शक्ति पूजित..इस धरा पर....शक्ति का संहार कर | अहं के कुंठित पथों पर..मत करो बलिदान ममता | सृष्ठि के..उपहार में है ....दंभ की..प्रतिमान समता | माँ का गौरव..हो कलंकित..खुद न खुदको हार दो | माँ मुझे भी प्यार दो...! माँ मुझे भी प्यार दो...! ( अनुपम आलोक )

जिंदगी में ..आचरण का ,व्याकरण हैं बेटियाँ |
दो कुलों की तरणि-तारण, आवरण हैं बेटियाँ |
सम्पदा.. सब बांटते सुत,बेटियाँ ..दुख बांटती ,
है यही कारण ..धरा का ,जागरण.. हैं बेटियाँ |

बन के गौरव सदन बढ़ रहीं बेटियाँ |
ज्ञान धन में मगन  पढ़ रहीं बेटियाँ |
पंख के बल..बिहंगो ने अंबर छुआ,
पंख के बिन गगन चढ़ रहीं बेटियाँ |
                       (अनुपम आलोक )

                                (अनुपम आलोक )

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