भरम पर भरम सब दिये जा रहे है | हया त्याग कर सब जिये जा रहे हैं | हुय़े..चेतना शून्य..कितना प्रगति में, अमृत समझ विष पिये जा रहे हैं | (अनुपम आलोक )
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