Sunday, August 30, 2015

श्रावण मास 2015 भगवान महाकाल अर्चन


1----
जय सोमनाथ..मल्लिकार्जुन..जय महाकाल प्रभु अविनाशी |
ओंकारेश्वर.. जै... ममलेश्वर..जय बैद्यनाथ... प्रभु कैलाशी |
भीमा शंकर...जय रामेश्वर...जय नागेश्वर.. जय विश्वनाथ,
त्रयम्बकेश्वरम्.. केदार नाथ.. जय घूष्मेंश्वर प्रभु सुखराशी |
यह द्वादश ज्योतिर्मय स्वरुप ...शिवशंकर अवडरदानी के |
सुमिरन से भव भय फंद कटें.. इस मृत्यु लोक में प्राणीं के |
                                             
2---
नमो नीलकंठम्,,त्रिनेत्रम्..पुरारी |
गंगा धरम्,,शिव..महेन्द्रम् मुरारी |
महाकाल,,शशिशेखरम्..हे दयालू,
चरण की शरण में..रहूँ उम्र सारी |

3---
शशि-सूर्य मुदित अंतस चंदन |
संध्या सुरम्य.. ,नैसर्गिक तन |
लख नयन..मुदित हो जाते तब,
धरती अंबर की.. अमर छुअन |
            
4---
हे दुख हर्ता...मंगल कर्ता....जग के पालन हार |
पत राखौ....मेरी त्रिपुरारी...बरधा के असवार |
चरण वन्दना करुं नाथ मैं,काल गति के स्वामी,
गणपति के पितु..महाकाल हे.. गौरी के भरतार |
                             
4---
जटं शोभि गंगम्..भुजगेन्द्र हाराय |
ऱभे भस्म अंगम्... शशि शेखराय |
शुाभम् नीलकंठम्..त्रिनेत्रम् मुरारी,
महाकाल प्रनवउँ..ज्योतिर्स्वरुपाय |
            
5---
जय करुणाकरअवडरदानी,त्रिभुवन पति,त्रिपुरारी |
जय डमरु धर, पार्वती पति, जय शमशान बिहारी |
हे नागेश्वर, महाकाल प्रभु, अरज..मेरी सुन लीजै,
शरणागत हो..दीन-हीन मैं..आया शरण तिहारी |

6---
शीश पर...प्रभु...चंद्र -गंगा..को बिठाया आपने |
कंठ पर....विष दंत ..टोली..को सजाया आपने |

शक्ति ही शिव..शिव ही शक्ती,यह बलाने के लिये ,
अर्धनारीश्वर… स्वयं को „„था.. बनाया आपने |
                                         
कटि कसी..मृग चर्म,,तन पर..भस्म का श्रंगार कर,,
हिम शिखर..कैलाश पर,, आसन.. जमाया आपने |

कर में डमरु..बैठ नंदी,, शक्ति को..निज साथ ले,,
वेष..अवडर.. दानियों का,, है... बनाया आपने |

भूतभावन, पतित पावन, काल.. हू.. के काल प्रभु,,
सृष्ठि की..हर सांस में,, खुद को.. समाया आपने |

पार भव से..हो गया,,सातो सुखों को..भोग कर,,
ले शरण..जिस भक्त को,, अपना.. बनाया आपने |
                               

7---
शशि-शीश पै उतंग,,कंठ घेरे हैं भुजंग,,भस्म रमी अंग -अंग.. भंग पिये जो मलंग है |
लिये भूत-प्रेत संग,, चढि नंदी जी के अंग,,आदि शक्ति है बामंग,,रंगे भक्तन के रंग हैं |
काल.. हू.. के काल, महाकाल विकराल,, कटि कसे मृग छाल,, भाल फूटि रही गंग है |
पद पंकज निहोर,, माँगउं दोनो कर जोरि,, महाकाल प्रभु मोरि..साघौ ,,जीवन पतंग है |
                           

8--
शशि..गंग शीशम्.. कंठम् भुजंगम्....!
रमै भस्म अंगम्,, विलक्षण त्रिनेत्रम्...!
नमो नीलकंठम्,,,,,साष्टांग शरणम्... !
उज्जैन शोभित. , महाकाल चरणम्..!

9--
यह शिव शंकर अवडर दानी,,महाकाल अविनाशी |
उज्जैनी में ...आय विराजे ,,,,,कैलाशी ...के वासी |
चरण..शरण गह महाकाल की ,शीश नवाओ भक्तो,
भस्म आरती के यह दर्शन ,नयनाभिराम, सुखराशी |
                
10--
शशि..गंग शीशम्.. कंठम् भुजंगम्....!
रमै भस्म अंगम्,, विलक्षण त्रिनेत्रम्...!
नमो नीलकंठम्,,,,,साष्टांग शरणम्... !
उज्जैन शोभित. , महाकाल चरणम्..!
                         
11---
भंग की तरंग में विहंग अंग-अंग हुआ..
रंग चढ़ा सावन की मस्त सी फुहारों का |
दर्शी त्रिकाल, महाकाल, विकराल, भाल..
रुप में रंगोली छजी मुक्त मन विकारो का |
देवाधि देव, महादेव, सत्यमेव, लेव...
दास का प्रणाम, अविराम मनुहारो का |
काम,क्रोध,मद,मोह,लोभ कर क्षार प्रभु,
मन में प्रवाह भरो "अनुपम" विचारों का |
                              (अनुपम आलोक )

��������

No comments:

Post a Comment